मंगलवार, 2 सितंबर 2008

कला इन दिनों

कला इन दिनों पूरी दुनिया में उन्नत स्थिति में है , नई कला नए कलाकार नए कला संस्थान सब अपनी जगह कला के उत्थान में लगे है ,इसी के साथ कला दलालों का एक साम्राज्य है जो कला के लिए कालाबाजारी भी करता है इसी तरह कला की आधुनिक शिक्षा में अनेक माफिया सक्रिय है वह कलाकार है कला इतिहासकार कला समिछक है न जाने क्या क्या है ।
कला और कलाकार


धीरे धीरे खत्म होती लोककलायें
नौटंकी का बदला स्वरूप अभी बीबीसी पर यह रिपोर्ट पढी, पढकर काफी दुःख हुआ, कि भारतीय लोककला नौटंकी,अपना स्वरूप खो रही है और अश्लीलता की तरफ बहुत तेजी से बढ रही है. और तो और इसके वजूद पर ही अब सवालिया निशान है. ना जाने कितने अच्छे नौटंकी कलाकारो ने अपने बच्चों को इस काम मे डालने से मना कर दिया है.
मुझे याद है, पुराने जमाने मे गुलाब बाई की नौटंकी बहुत मशहूर थी, ना जाने कितनी गाथाये हमने नौटंकी के जरिये देखी….पृथ्वीराज चौहान,आल्हा उदल,रामायण,हातिमताई के किस्से, सामाजिक कुरीतियो पर कटाक्ष करती नौटंकिया….क्या क्या नही था.
बहुत समय पहले मुझे याद है गुलाब बाई ने एक इन्टव्यू मे आगाह किया था कि नौटंकी की कला, आने वाले समय मे जीवित नही रह पायेगी, आज वही हो रहा है.
लेकिन कभी कभी मै सोचता हूँ कि
क्या इन सबके जिम्मेदार हम लोग नही है?क्या हम लोगो ने नौटंकी से मुंह नही मोड़ लिया है?क्या हम अब फटाफट मनोरंजन नही चाहते है?अब हम नौटंकी को सिर्फ अश्लीलता के गाने सुनने का माध्यम मानते है?
इन सब सवालों के जवाब हम मे से किसी के पास भी नही है, क्योंकि हम तो बस फिल्मो,टीवी और इन्टरनेट मे ही मनोरंजन तलाशते है.

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