कविता
जब कोई शासक संगीनों के साए में
अवाम के कष्ट पूंछने आये !
क्या संभव है अवाम का सच जान पाना
आजकल तमाम सत्तासीन यही कर रहे हैं
उनके कुकर्मों की आग में अवाम जल रहा है
जिस अवाम ने अपने शुकून के लिए उन्हें चुना
वही आज दहसत फैला रहे हैं दंगे करवा रहे हैं
मुझे यह कहते हुए अफ़सोस और रोष भी है
जिन्होंने ये सब करने में कोई संकोच नहीं किया
वही राष्ट्रपति से किसी की सत्ता को हटाने का
अभियान चला रहे हैं,
इनसे मैं पूछना चाहता हूँ की आप का हर कार्यकर्ता
नफ़रत के शोलों को लिए अवाम को जला रहा है
सदियों से सत्ता के ही लिए अवाम को जलवा रहा है
जिसने किसी जलाई हुयी कौम के बचाव के लिए
आवाज उठाई हो उसी को सत्ता से बेदखल कराने के
आप हथकंडे अपना रहे हो.
-डॉ. लाल रत्नाकर
क्या मैंने देते समय ये याद रखा किसको कितना चाहिए इसको,
अगर नहीं तो फिर शिकवा कैसा, उन्हें मिला जिन्हें तवज्जो थी!!
नफरतों की शक्ल नहीं होती कोई, चहरे बयां कर देते सच हैं,
मुझे एहसास जब हुआ तब तक कुछ भी नहीं बचा था !
शुक्र है कि कुशलता इनकी, बचा ली लाज कई बेशर्मों की,
कटाच्छ करते हुए उन्हें तो अब भी शरम नहीं आती !
कैसी हया है उनकी जो फिर भी अभी तलक नहीं जाती
कहीं छुपाने के लिए बेहयाई खुद की !
-आज की परिस्थितियों में शिक्षा.........
जब कोई शासक संगीनों के साए में
अवाम के कष्ट पूंछने आये !
क्या संभव है अवाम का सच जान पाना
आजकल तमाम सत्तासीन यही कर रहे हैं
उनके कुकर्मों की आग में अवाम जल रहा है
जिस अवाम ने अपने शुकून के लिए उन्हें चुना
वही आज दहसत फैला रहे हैं दंगे करवा रहे हैं
मुझे यह कहते हुए अफ़सोस और रोष भी है
जिन्होंने ये सब करने में कोई संकोच नहीं किया
वही राष्ट्रपति से किसी की सत्ता को हटाने का
अभियान चला रहे हैं,
इनसे मैं पूछना चाहता हूँ की आप का हर कार्यकर्ता
नफ़रत के शोलों को लिए अवाम को जला रहा है
सदियों से सत्ता के ही लिए अवाम को जलवा रहा है
जिसने किसी जलाई हुयी कौम के बचाव के लिए
आवाज उठाई हो उसी को सत्ता से बेदखल कराने के
आप हथकंडे अपना रहे हो.
-डॉ. लाल रत्नाकर
क्या मैंने देते समय ये याद रखा किसको कितना चाहिए इसको,
अगर नहीं तो फिर शिकवा कैसा, उन्हें मिला जिन्हें तवज्जो थी!!
नफरतों की शक्ल नहीं होती कोई, चहरे बयां कर देते सच हैं,
मुझे एहसास जब हुआ तब तक कुछ भी नहीं बचा था !
शुक्र है कि कुशलता इनकी, बचा ली लाज कई बेशर्मों की,
कटाच्छ करते हुए उन्हें तो अब भी शरम नहीं आती !
कैसी हया है उनकी जो फिर भी अभी तलक नहीं जाती
कहीं छुपाने के लिए बेहयाई खुद की !
2025
नये वर्ष में प्रश्न पूछिए
समस्याओं के बारे में !
अपने अपने जनप्रतिनिधियों से
संविधान के बारे में
जिनके आका बोल रहे हैं
बाबा साहब के बारे में
इनको गुब्बारे पकड़ा कर
मनुस्मृति पर देश चलाने के
सवाल पर ?
जो कुछ हो रहा है, क्या वह
संविधान सम्मत है?
पिछड़ों के जनप्रतिनिधियों का
दलित सांसदों से क्या नाता है,
क्या इन सबके दिल में, मन में
संविधान से कुछ नाता है।
पूछिए जरूर पूछिए ?
अपने अपने जनप्रतिनिधियों से।
प्रश्न पूछिए कहीं देर ना हो जाए,
आपका पद भी गफलत में
सरक न जाए मनुवाद में !
वर्ण व्यवस्था में अधिकारों पर
लगा बहुत मजबूत ताला है।
बाबा साहब ने तोड़ा था,
मनुस्मृति को जला जलाकर!
प्रश्न पूछिए आका से
आगे का क्या खाका है।
-डॉ. लाल रत्नाकर
-आज की परिस्थितियों में शिक्षा.........
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